Wednesday, December 30, 2015

21% of country's beggars are 12th pass देश के 3.72 लाख भिखारियों में से 75,000 हैं 12वीं पास


नई दिल्ली: भारत में आप कहीं भी चले जाएं आपको भिखारी हर जगह मिल जाएंगे. 2011 की जनगणना रिपोर्ट में ”कोई रोजगार ना करने वाले और उनके शैक्षिक स्तर” का आंकड़ा हाल ही में जारी किया गया है. इसके अनुसार देश में कुल 3.72 लाख भिखारी हैं, लेकिन आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि इनमें से बहुत सारे पढ़े लिखे हैं.
जी हां.. इन 3.72 लाख भिखारियों में से 21 फीसदी ऐसे हैं जो 12वीं तक पढ़े लिखे हैं. यही नहीं इनमें से 3000 ऐसे हैं जिनके पास किसी प्रोफेशनल कोर्स का डिप्लोमा है और बहुत सारे ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं.
इन आंकड़ो से एक बात और सामने आई है. ये सब भिखारी अपनी पसंद से नहीं बने बल्कि शायद मजबूरी में बने हैं. इनमें से अधिकतर का कहना था कि पढ़ने लिखने के बाद अपनी डिग्री और एजुकेशनल क्वालिफिकेशन के आधार पर भी संतोषजनक नौकरी ना मिलने पर वे भिखारी बने.
52 साल के दशरथ परमार गुजरात यूनिवर्सिटी से एम.कॉम की डिग्री ले चुके हैं. दशरथ पहले सरकारी नौकरी पाना चाहते थे लेकिन इस चक्कर में उनके हाथ से उनकी प्राइवेट नौकरी भी चली गई जिसके सहारे उनका परिवार गुजर बसर करता था. उनके तीन बच्चे हैं. आज दशरथ मुफ्त खाना खिलाने और दान देने वाली संस्थाओं के भरोसे जी रहे हैं. उनकी मां बीमार है और अस्पताल में भर्ती है.
45 साल के दिनेश खोधाबाई जो कि 12वीं पास हैं और अच्छी अंग्रेजी बोल लेते हैं. दिनेश बताते हैं, ‘मैं गरीब हूं पर ईमानदार हूं. मैं भीख इसलिए मांगता हूं क्योंकि इसमें नौकरी की तुलना में ज्यादा कमाई हो जाती है. मैं पहले एक अस्पताल में वार्डब्वॉय था वहां मेरी तनख्वाह 100 रूपए रोजाना ही थी, जबकि यहां मैं रोजाना 200 रूपए कमा लेता हूं.”
सिर्फ दिनेश ही नहीं उनके साथ 30 और भिखारी भी हैं जो अहमदाबाद के भद्रकाली मंदिर के पास भीख मांगते हैं. रोज सुबह भीख मांगने से पहले इनका झुंड एक जगह बैठ कर चाय पीता है. यह चाय भी एक दुकानदार उन्हें मुफ्त में पिलाता है.
मुंबई के रहने वाले अशोक जयसुर 10वीं तक पढ़े लिखे हैं लेकिन आजकल वह अहमदाबाद के लाल दरवाजा इलाके में भीख मांगते हैं. अशोक पहले सेक्योरिटी गॉर्ड थे लेकिन उनको रतौंधी थी जिसकी वजह से उनकी आंखो की रोशनी चली गई. बहुत कोशिशों के बाद भी उन्हें दूसरी नौकरी नहीं मिली फिर मजबूरी में परिवार का पेट पालने के लिए वो भीख मांगने लगे. सड़कों और गलियों में भीख मांगकर अशोक अपनी 9 बेटियों, पत्नी और अपना पेट भरते हैं.
भिखारियों के लिए काम करने वाले एक गैर सरकारी संगठन मानव साधना के बीरेन जोशी के मुताबिक, ”भिखारियों को भीख में आसानी से पैसा मिल जाता है. इसी लालच की वजह से वो भीख मांगने का काम छोड़ना नहीं चाहते.” समाजशास्त्री गौरांग जानी कहते हैं, ”जब गेजुएशन के बाद भी लोग भीख मांग रहे हैं इसका मतलब है कि देश में बेरोजगारी की समस्या बहुत गंभीर रूप ले चुकी है.”

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