Wednesday, December 23, 2015

OPEN Letter To arvind kejriwal


केजरीवाल भईया…
सादर प्रणाम…
मैं कुशल मंगल हूं और मुझे ये देखकर बहुत खुशी हुई कि आपकी खांसी ठीक हो चुकी है. गुस्से से लाल-पीला होने वाली बीमारी से आपको निजात दिलाने के लिए मैं रोज मां दुर्गा से प्रार्थना करता हूं. आगे मुख्य समाचार ये हैं कि चूंकि मैं गांव वाला हूं तो आपका गांव वालों के प्रति नजरिया देखकर जरा दुखी हूं. तो सोचा कि आपको पोस्टकार्ड या अंतरदेशीय पत्र लिख ही दूं.
आपके प्रधान सचिव के दफ्तर पर सीबीआई ने छापा डाला…ये टीवी पर ब्रेकिंग में देखा. अभी कुछ समझता.. सोचता इससे पहले ही आपके ‘डॉयलॉग’ आने लगे. सियासी आरोप-प्रत्यारोप अब रोज देखने का आदि हो चुका हूं. भाषा के गिरते स्तर पर मुझे कोई चिंता नहीं है. आप बड़े लोगों को अक्सर शहर के मोहल्ले के ‘लोकल गुड़ों’ की भाषा में झगड़ते देखता हूं. उस दिन भी दिनभर टीवी पर सुबह से शाम तक आपको ‘तिलमिलाते’ देखा. भाषा और अंदाज तो माशाल्लाह मैं बहुत दिन से आपका देख रहा हूं… इस पर नो कमेंट.
अब आप सोच रहे होंगे कि मैं आपको चिट्ठी क्यों भेज रहा हूं. आपसे शिकायत क्या है? भाषाई ‘पाजामा’ तो आपका पहले से ही उतरा है.. सब चोर हैं जी.. इनको ठीक कर दूंगा.. उनको ठीक कर दूंगा.. ये कुर्सी पाने से पहले तक हम खूब चटकारे लेकर सुनते और देखते रहे हैं. आपके सियासी समकक्ष और आपसे बड़े ओहदेदारों का भी भाषाई स्तर कुछ ऐसा ही है. तो आप सोच रहे होंगे आपसे मुझे दिक्कत क्यों हो गई?
दरअसल सीबीआई छापे के बाद आप (केजरीवाल) पीएम मोदी को धमकाने वाले अंदाज में फिल्मी डॉयलॉग मारते-मारते गांव वालों के प्रति अपना नजरिया भी बता दिये. आपने कहा कि मैं तो गांव वाला हूं मेरे शब्द खराब हो सकते हैं तुम्हारे तो करम फूटे हैं. अब सवाल मेरे मन में ये उठा कि एक बार फिर आप सर्टिफिकेट दे दिये. गांव वालों के शब्द खराब होते हैं ये सर्टिफिकेट आपने किस आधार पर बांट दिया जनाब?
आपको शायद याद न हो मैं याद दिला देता हूं.. अपने से उम्र में बड़े प्रोफेसर आनंद को आपने ‘कमीना’ और कुछ ऐसे शब्द बोले थे कि जिसे मैं लिख भी नहीं सकता हूं… ऐसे वचन तो आप जैसे शहर वालों के हो सकते हैं.. हम गांव वाले तो प्राथमिक विद्यालय के अपने अध्यापकों को भी आज तक ‘गुरू जी प्रणाम’ ही कहते हैं. अरे हां.. हम गांव वाले भोलेपन में ऐसे ही होते हैं. आप शहर वाले ‘अफसर’ शायद हो सकता है कमीना और…. लात मारने वाले अंदाज में अध्यापकों से मिलते होंगे.
सीबीआई छापे के बाद तिलमिला कर आप कह रहे थे कि ‘जिसको पूरा देश सबसे ईमानदार पार्टी मानता है, सबसे ईमानदार कैबिनेट मानता है.’ तो जरा ये बता दीजिए कि ये ईमानदारी वाला सर्वे आपकी पार्टी ने ही कराया था न. कौन आपको बता दिया कि पूरा देश आपको ईमानदार मानता है? किस आधार पर ये बातें आप बोल रहे थे. अब मैं ये कहूं कि पूरी दुनिया मुझे सबसे बड़ा पत्रकार मानती है. तो बताइए लोग.. मुंह छुपाकर हंसेंगे ही न.. देखिए ऐसी लंबी-लंबी बातें हमारे गांव वाले नहीं करते. वे तो गेहूं की कटाई, धान की रोपाई, गन्ने की सिंचाई.. में व्यस्त और मस्त रहते हैं. जमीन जोतते हैं और ‘जमीन’ पर ही रहकर बातें भी करते हैं.
मैं अक्सर दिल्ली में दोस्तों से कहता हूं कि इस शहर से तो अच्छा मेरा गांव है. यहां कोठी है, बंगले हैं और कार हैं लेकिन वहां परिवार है और संस्कार है. शहर में चीखों की आवाजें भी दीवारों से टकरा कर दम तोड़ देती हैं. लेकिन हमारे गांव में दूसरों की सिसकियां भी सुनी जाती हैं. शहरों में रिश्ते बिक जाते हैं. यहां सफलता अर्थ पर आधारित है. लेकिन गांव में चरित्र और ईमान ही पूंजी होती है. बाकी मसला सिर्फ ये है कि सीएम साहेब आप हम गांव वालों को अब सर्टिफिकेट मत दीजिए…चिट्ठी का जवाब दीजिए चाहे मत दीजिए .. मेरी अर्जी जरूर सुन लीजिए. बाकी पूरे गांव का समाचार ठीक है. चाचा आपको आशीर्वाद भेजे हैं.

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