नई दिल्ली: दिल्ली का ऑटो परमिट घोटाला केजरीवाल सरकार के लिए गले की फांस बनता नजर आ रहा है. 10 हजार नए ऑटो परमिट जारी करने में 25 हजार से सवा लाख रुपये तक की घूस मांगने के इस मामले में बीजेपी मुख्यमंत्री केजरीवाल और परिवहन मंत्री गोपाल राय से इस्तीफा मांग रही है. अनुमान है कि ये घोटाला ढाई से पांच करोड़ रुपये तक हो सकता है.
ईमानदार और साफसुथरी सरकार देने का वादा करके सत्ता में आई दिल्ली की केजरीवाल सरकार एक साल के भीतर ही सबसे बड़े घोटाले के आरोप में घिर गई है. घोटाला हुआ है दिल्ली में परिवहन विभाग से 10 हजार नए ऑटो परमिट जारी करने में. आरोप ये है कि 23 दिसंबर से अब तक जारी किए गए 932 एलओआई यानी लेटर ऑफ इंटरेस्ट में नियमों की अनदेखी की गई और मनमाने लेटर जारी करने के लिए घूस ली गई है.
इसी साल जनवरी में नए ऑटो परमिट के लिए आवेदन मांगे गए. नियम ये था कि आवेदन के क्रम में लेटर ऑफ इंटरेस्ट जारी किया जाएगा. लेकिन अब तक जारी 932 लेटर ऑफ इंटरेस्ट में मनमाने तरीके से बांटे गए. ऑटो चालकों की बजाए डीलरों और दलालों को भी लेटर ऑफ इंटरेस्ट दिया गया. कई फर्जी पतों पर लेटर ऑफ इंटरेस्ट जारी कर दिया गया.
क्या है लेटर ऑफ इंटरेस्ट?
लेटर ऑफ इंटरेस्ट वो दस्तावेज है जिसकी मदद से ऑटो चालकों को नए ऑटो के लिए लोन मिलता है लेकिन दिल्ली के परिवहन विभाग में हुए फर्जीवाड़े की वजह से ऑटो चालकों को या तो दलालों और डीलरों से ब्लैक में लेटर ऑफ इंटरेस्ट लेना पड़ रहा है या फिर दोगुना पैसा देकर लेटर ऑफ इंटरेस्ट वाला नया ऑटो खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है.
एसएमएस के जरिए इस भ्रष्टाचार की शिकायत मुख्यमंत्री केजरीवाल तक पहुंचने के बाद परिवहन विभाग के डिप्टी कमिश्नर एस रॉय बिस्वास, इंस्पेक्टर मनीष पुरी और क्लर्क अनिल यादव को सस्पेंड कर दिया गया है.
विपक्ष अब केजरीवाल सरकार के कामकाज पर ही सवाल उठा रहा है. बीजेपी का कहना है कि जिस केजरीवाल ने ईमानदारी की कसम खाई थी उनकी नाक के नीचे पड़ा है गरीब ऑटो चालकों की जेब पर डाका. बीजेपी मुख्यमंत्री और परिवहन मंत्री का इस्तीफा मांग रही है.
अब तक जारी 932 लेटर ऑफ इंटरेस्ट को कैंसिल कर दिया गया है और मामले की जांच विजिलेंस विभाग से करवाई जा रही है लेकिन विपक्ष सवाल पूछ रहा है कि क्या दिल्ली की केजरीवाल सरकार ईमानदारी का नारा भूल चुकी है.
धांधली कैसे हुई?
आखिर दिल्ली सरकार में नए ऑटो परमिट बांटने में धांधली हुई तो कैसे. आरोप ये है कि जो प्रक्रिया कंप्यूटराइज्ड होनी चाहिए थी उसे कर्मचारियों के हाथ में इसलिए दे दिया गया ताकि पैसे बनाए जा सकें. इस धांधली का तरीका देखकर आप चौंक जाएंगे.
दिल्ली के ऑटो परमिट घोटाले की जड़ में है लेटर ऑफ इंटरेस्ट. यानी नए परमिट के लिए दिल्ली सरकार की हरी झंडी और इसे बैंक या फाइनेंसर को दिखाने के बाद ही किसी ऑटो चालक को नए ऑटो के लिए लोन मिल सकता है. इसी अहम दस्तावेज को जारी करने में हुआ है घोटाला.
कौन-कौन शामिल और कितने का भ्रष्टाचार?
इस घोटाले में शामिल हैं ट्रांसपोर्ट विभाग के कर्मचारी, दलाल और डीलर-फाइनेंसर. इन तीनों के गठजोड़ से नए ऑटो परमिट के लिए लेटर ऑफ इंटरेस्ट जारी करने में करीब 5 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है.
ट्रांसपोर्ट कर्मचारियों की भूमिका ये है कि उन्होंने नियमों को ताक पर रख दिया और बिना आवेदन क्रम के ही मनमाने तरीके से जिसे चाहा उसे लेटर ऑफ इंटरेस्ट जारी कर दिया.
इसके बाद आता है दलालों का नंबर– ट्रांसपोर्ट विभाग से दलालों को भी लेटर ऑफ इंटरेस्ट दिया गया. ऐसे में दलालों ने उन आवेदनकर्ताओं से संपर्क किया जिन्हें लेटर ऑफ इंटरेस्ट जारी नहीं किया गया था.
कितनी है नए ऑटो की कीमत और कितनी चुकानी पड़ रही थी?
दरअसल एक नए ऑटो की कीमत कुल 1 लाख 75 हजार रुपये है. लेकिन लेटर ऑफ इंटरेस्ट के लिए 25 हजार रुपये की घूस मांग रहे थे दलाल, यही नहीं अगर लेटर समेत नया ऑटो चाहिए तो 2 लाख 90 हजार की मांग की जा रही थी यानी 1 लाख 15 हजार रुपये की घूस.
घूस की मोटी रकम चुकाने में ऑटोवालों को परेशानी ना हो इसका इंतजाम किया डीलरों और फाइनेंसरों ने. रिजर्व बैंक के मुताबिक दिल्ली में 50 से 60 डीलर ही ऐसे हैं जिन्हें ऑटो लोन देने की इजाजत है. ये डीलर करीब 800 एजेंटों के जरिए काम करते हैं.
एजेंटों ने लेटर समेत हर ऑटो के लिए दो फाइलें बनानी शुरू कर दीं. पहली फाइल 1 लाख 75 हजार के लोन की यानी ऑटो की असली कीमत की थी. इसकी किस्तें ऑटो लेने वाले शख्स को चेक से चुकानी थी. लेकिन घूस की रकम को जोड़कर एक दूसरी कच्ची फाइल भी बनाई गई. इस फाइल के हिसाब से बची हुई रकम पर 16 से 20 फीसदी ब्याज दरें लगाई गईँ. इसकी किस्तें नगद जमा करने की सुविधा भी दी जा रही थी.
कुल मिलाकर एक बड़ा जाल रचा गया था जिसके जरिए ऑटो चालकों को नए परमिट के लिए लूटा जा रहा था.
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